
नक्सलियों के लिए खौफ का दूसरा नाम माने जाने वाले DRG (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के जवान, छत्तीसगढ़ के सबसे चुनौतीपूर्ण इलाकों में ऑपरेशन को अंजाम देने वाले विशेष बल हैं। ये जवान स्थानीय आदिवासी समुदाय से आते हैं और इलाके की हर छोटी-बड़ी भौगोलिक और सामाजिक जानकारी रखते हैं, जो उन्हें नक्सल विरोधी अभियानों में बेहद प्रभावी बनाता है।
DRG जवानों को खासतौर पर नक्सली गतिविधियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। वे जंगल युद्धकला (गुरिल्ला वॉरफेयर) में माहिर होते हैं और दुर्गम इलाकों में तेज गति से ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम हैं। ये न केवल आधुनिक हथियारों से लैस होते हैं, बल्कि जंगल में टिकने और दुश्मन को चकमा देने की कला में भी निपुण होते हैं।
बीजापुर जैसी घटनाओं में जब ये जवान शहीद होते हैं, तो यह न केवल सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी क्षति होती है, बल्कि उनके परिवारों और स्थानीय समुदाय के लिए भी गहरा आघात होता है। इन जवानों की बहादुरी और बलिदान से ही नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति और स्थिरता लाने की कोशिशें जारी हैं।
DRG के जवानों का साहस और समर्पण पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका संघर्ष यह दर्शाता है कि देश के सबसे दुर्गम और चुनौतीपूर्ण इलाकों में भी न्याय और सुरक्षा कायम रखने के लिए किस हद तक समर्पण की आवश्यकता होती है।